Friday, March 12, 2010

mi.....

वो रोज़ दर रोज़ भाग दौड़ की जिंदगी,
वो गला देने वाली थकान,
उसपर अचानक बादल की घटा लहराई है!
ये सुस्ती ना जाने कहाँ से आई है?!!
*
वो दिन भर के काम से थका हुआ शरीर,
कभी इस करवट तो कभी उस करवट,
वो पलंग से उठने का प्रयास.
फिर सुबहा, बरखा ने आकर सूरज की बत्ती बुझाई है!
ये सुस्ती ना जाने कहाँ से आई है?!!
*
वो ठंडी ठंडी हवायें,
वो गीली मिट्टी की खुशबू,
वो चेहरे पर हल्के पड़ती बारिश की बूंदे,
और वो सुबहा 8 की क्लास!
वो क्लास क्या हमने कभी भुलाई है!?
पर आज ये सुस्ती ना जाने कहाँ से आई है?!!
*
वो हवा मे बारिश की नमी,
वो मन मे खल रही किसी की कमी,
ये बारिश तो नए जीवों को भी रिहा कर लाई है!
ये ताज़गी ना जाने कहाँ से आई है?!!
*
वो कमल के पत्ते पर थिरकती शबनम की बूँद,
वो कानो पर पड़ती बूँदों की गूँज,
बूँदों के ही सुर और बूँदों के ही ताल,
आज खूब बदली मौसम ने चाल.
वो कभी ना खिलने वाली सुखी टहनी,
वो टहनी भी आज रंग लाई है!
ये ताज़गी ना जाने कहाँ से आई है?!


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